Pakistan in 4 Front War | बलूचिस्तान पर क्यों है ट्रंप की नजर?| Teh Tak Chapter 5

नक्शे पर ये इलाका तो बड़ा है लेकिन इस जगह के लोगों को हमेशा छोटा दिखाया गया है। इस जगह की जमीन के नीचे गैस, तेल, सोना है। लेकिन ऊपर रहने वालों के हिस्से धुआं, डर और लाशें आया है। पाकिस्तान अब अमेरिका और चीन की दुश्मनी का नया अखाड़ा बन बन गया है। गांव बसा नहीं कि लुटेरे पहले आ गए। चीन ग्वादर पोर्ट को सीपीईसी का हब बनाकर मिनिरल एक्सपोर्ट को अपने सप्लाई चेन में संघटित करना चाहता है और अब अमेरिका भी इसमें कूद पड़ा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पाक के ऑयल रिजर्व को डिवेलप करने जा रहे हैं। उनकी उम्मीदों का आलम देखिए, उन्हें भरोसा है कि एक दिन भारत भी पाकिस्तान से तेल खरीदेगा। हालांकि बलूचिस्तान में अशांति के चलते पाकिस्तान में ऑयल रिजर्व डिवेलप करना अमेरिका के लिए भी आसान नहीं। बलूचिस्तान में मिनरल डिप्लोमेसी जैसा की हमने आपको बताया कि पाकिस्तान के पास खरबों डॉलर के संसाधन हैं और इस संभावित संसाधन शक्ति का केंद्र बलूचिस्तान है। बलूचिस्तान पाकिस्तान का एक संसाधन-समृद्ध लेकिन अस्थिर प्रांत है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसमें 6 ट्रिलियन डॉलर (भारतीय मुद्रा में लगभग 50100000 करोड़ रुपये) से 8 ट्रिलियन डॉलर मूल्य के खनिज भंडार हैं, जिनमें डिस्प्रोसियम, टर्बियम और यिट्रियम जैसे दुर्लभ मृदा तत्व शामिल हैं - जो इलेक्ट्रॉनिक्स, हरित ऊर्जा और रक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन खनिजों के लिए वैश्विक होड़ को खनिज शीत युद्ध कहा जा रहा है। अमेरिका चीन के प्रॉक्सी वार में फंस जाएगा बलूचिस्तानगौर करने वाली बात ये है कि बलूचिस्तान में अस्थिरता के कारण अमेरिका सतर्क है, वहीं चीन ने बड़े निवेश, खासकर 62 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के ज़रिए, वहाँ आक्रामक रूप से प्रवेश किया है। हालाँकि, इन परियोजनाओं का बलूच विद्रोहियों द्वारा कड़ा विरोध किया जा रहा है, जो इन्हें शोषक मानते हैं। दुर्लभ मृदा संसाधनों तक पहुँच को लेकर बढ़ती अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता ने पाकिस्तान को एक प्रमुख खिलाड़ी बना दिया है, हालाँकि क्षेत्रीय अशांति के कारण खनन अभी भी अत्यधिक जोखिम भरा बना हुआ है।भविष्य में चुनौतियां कईइस समझौते के बाद पाक क्षेत्रीय ऊर्जा केंद्र बनने की कोशिश कर सकता है। ट्रंप ने यहा तक कहा कि कौन जानता है, शायद एक दिन पाकिस्तान भारत को तेल बेचे। यह बयान प्रतीकात्मक है, लेकिन इसके जरिए ट्रंप दक्षिण एशिया में अपनी आर्थिक पकड़ मजबूत करना चाहते है। तेल भंडार मिलने भर से इकॉनमी को बूस्ट मिल जए, जरूरी नहीं। वेनेजुएला का उदाहरण सामने है। यह दूर की कौड़ी है कि पाकिस्तान में तेल भंडार मिले और अमेरिकी मदद से वहां बड़ी रिफाइनरी भी बन जाए। पाकिस्तान इस नए भू-राजनीतिक समीकरण में बलूचिस्तान के संसाधनों का लाभ उठाने की कोशिश में है। लेकिन यहां पर सुरक्षा संबंधी चिंताएं हैं। खासकर बलूच अलगाववादी समूहों से जो स्थानीय संसाधनों के विदेशी दोहन के विरोध में हैं। क्षेत्र में जारी हिंसा के बीच यहां पर खनन जोखिम भरा है।इसे भी पढ़ें: Pakistan in 4 Front War | पाक की कठपुतली सरकार और सेना आउट ऑफ कंट्रोल ?| Teh Tak Chapter 6 

Oct 25, 2025 - 08:01
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Pakistan in 4 Front War | बलूचिस्तान पर क्यों है ट्रंप की नजर?| Teh Tak Chapter 5
नक्शे पर ये इलाका तो बड़ा है लेकिन इस जगह के लोगों को हमेशा छोटा दिखाया गया है। इस जगह की जमीन के नीचे गैस, तेल, सोना है। लेकिन ऊपर रहने वालों के हिस्से धुआं, डर और लाशें आया है। पाकिस्तान अब अमेरिका और चीन की दुश्मनी का नया अखाड़ा बन बन गया है। गांव बसा नहीं कि लुटेरे पहले आ गए। चीन ग्वादर पोर्ट को सीपीईसी का हब बनाकर मिनिरल एक्सपोर्ट को अपने सप्लाई चेन में संघटित करना चाहता है और अब अमेरिका भी इसमें कूद पड़ा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पाक के ऑयल रिजर्व को डिवेलप करने जा रहे हैं। उनकी उम्मीदों का आलम देखिए, उन्हें भरोसा है कि एक दिन भारत भी पाकिस्तान से तेल खरीदेगा। हालांकि बलूचिस्तान में अशांति के चलते पाकिस्तान में ऑयल रिजर्व डिवेलप करना अमेरिका के लिए भी आसान नहीं। 

बलूचिस्तान में मिनरल डिप्लोमेसी 

जैसा की हमने आपको बताया कि पाकिस्तान के पास खरबों डॉलर के संसाधन हैं और इस संभावित संसाधन शक्ति का केंद्र बलूचिस्तान है। बलूचिस्तान पाकिस्तान का एक संसाधन-समृद्ध लेकिन अस्थिर प्रांत है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसमें 6 ट्रिलियन डॉलर (भारतीय मुद्रा में लगभग 50100000 करोड़ रुपये) से 8 ट्रिलियन डॉलर मूल्य के खनिज भंडार हैं, जिनमें डिस्प्रोसियम, टर्बियम और यिट्रियम जैसे दुर्लभ मृदा तत्व शामिल हैं - जो इलेक्ट्रॉनिक्स, हरित ऊर्जा और रक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन खनिजों के लिए वैश्विक होड़ को खनिज शीत युद्ध कहा जा रहा है। 

अमेरिका चीन के प्रॉक्सी वार में फंस जाएगा बलूचिस्तान

गौर करने वाली बात ये है कि बलूचिस्तान में अस्थिरता के कारण अमेरिका सतर्क है, वहीं चीन ने बड़े निवेश, खासकर 62 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के ज़रिए, वहाँ आक्रामक रूप से प्रवेश किया है। हालाँकि, इन परियोजनाओं का बलूच विद्रोहियों द्वारा कड़ा विरोध किया जा रहा है, जो इन्हें शोषक मानते हैं। दुर्लभ मृदा संसाधनों तक पहुँच को लेकर बढ़ती अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता ने पाकिस्तान को एक प्रमुख खिलाड़ी बना दिया है, हालाँकि क्षेत्रीय अशांति के कारण खनन अभी भी अत्यधिक जोखिम भरा बना हुआ है।

भविष्य में चुनौतियां कई

इस समझौते के बाद पाक क्षेत्रीय ऊर्जा केंद्र बनने की कोशिश कर सकता है। ट्रंप ने यहा तक कहा कि कौन जानता है, शायद एक दिन पाकिस्तान भारत को तेल बेचे। यह बयान प्रतीकात्मक है, लेकिन इसके जरिए ट्रंप दक्षिण एशिया में अपनी आर्थिक पकड़ मजबूत करना चाहते है। तेल भंडार मिलने भर से इकॉनमी को बूस्ट मिल जए, जरूरी नहीं। वेनेजुएला का उदाहरण सामने है। यह दूर की कौड़ी है कि पाकिस्तान में तेल भंडार मिले और अमेरिकी मदद से वहां बड़ी रिफाइनरी भी बन जाए। पाकिस्तान इस नए भू-राजनीतिक समीकरण में बलूचिस्तान के संसाधनों का लाभ उठाने की कोशिश में है। लेकिन यहां पर सुरक्षा संबंधी चिंताएं हैं। खासकर बलूच अलगाववादी समूहों से जो स्थानीय संसाधनों के विदेशी दोहन के विरोध में हैं। क्षेत्र में जारी हिंसा के बीच यहां पर खनन जोखिम भरा है।

इसे भी पढ़ें: Pakistan in 4 Front War | पाक की कठपुतली सरकार और सेना आउट ऑफ कंट्रोल ?| Teh Tak Chapter 6