देश की राजधानी और दिलवालों के शहर दिल्ली की अवैध झुग्गियों पर चले बुलडोजर से उपजते सवालों के बीच प्रमुख विपक्षी पार्टी आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल भी अपने सुलगते आरोपों के साथ कूद पड़े हैं। इससे सत्ताधारी भाजपा की सियासी मुश्किलें बढ़नी स्वाभाविक हैं, जिससे बचने के लिए उसके नेता दलील दे रहे हैं कि कोर्ट के आदेशों के दृष्टिगत यह कार्रवाई चल रही है। लिहाजा इसमें भाजपा का कोई हाथ नहीं है। जबकि दिल्ली के दंगल में कूदे अरविंद केजरीवाल अपने पुराने बयानों का हवाला देते हुए याद दिला रहे हैं कि चुनाव से पहले ही उन्होंने झुग्गियों पर होने वाली संभावित कार्रवाई के बारे में लोगों को आगाह कर दिया हूँ और अब उनका साथ मिला तो दिल्ली सरकार के खिलाफ आर-पार की लड़ाई उनकी पार्टी लड़ेगी।
इसलिए चर्चा है कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक बार फिर से यहां के सियासी दंगल में कूद पड़े हैं। प्रायः उसी अंदाज में, जैसा कि वो चुनाव से पहले दिखाया करते थे। ऐसे में सवाल है कि आखिर ऐसी क्या वजह रही कि उन्हें खुद ही मैदान में उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा। वहीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना और पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया, राज्यसभा सांसद संजय सिंह आदि के रहते हुए भी उन्हें किसी सेनानायक की तरह खुद ही सियासी मैदान में उतरना पड़ा। जबकि दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद वो पंजाब का रुख कर चुके थे। वहीं, पंजाब व गुजरात विधानसभा उपचुनाव की जीत ने भी उन्हें उत्साहित किया है।
बताया जाता है कि भारतीय राजनीति में किसी भी चतुर नेता की सियासी मौत नहीं होती है, बल्कि ब्रेक के बाद उसके फिर से उभरने के चांसेज बने रहते हैं। बशर्ते कि उसे मुद्दे की समझ हो और जनसंघर्ष की ललक। ये दोनों चीजें केजरीवाल में कूट कूट कर भरी हैं। यही वजह है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के हारने के कई महीनों बाद अरविंद केजरीवाल एक बार फिर पूरी रौ में दिखे और दिल्ली सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक पर फिर उसी तरह से अटैक किया, जैसे वो पहले किया करते थे।
इसलिए लोगों के जेहन में यह सवाल कुरेद रहा है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि केजरीवाल को दिल्ली के मैदान पर उतरना पड़ा, जबकि दिल्ली में शिकस्त के बाद उन्होंने पंजाब में डेरा डाल दिया था। इस बीच कुछ घटनाएं भी हुईं, लेकिन वे दिल्ली आने से बचे। इससे लोग कयास लगा रहे हैं कि शायद वो गम्भीरता पूर्वक दिल्ली में वापसी का रास्ता और मुद्दे दोनों तलाश रहे थे, जो दिल्ली की अवैध झुग्गियों पर चले बुलडोजर ने उन्हें दे दिया। क्योंकि ये लोग ही तो उनके कोर वोटर्स रहे हैं।
यही वजह है कि जब उनके कोर वोटर्स के अवैध झुग्गियों पर बुलडोजर चला तो अरविंद केजरीवाल अपनी पूरी टीम के साथ पुनः दिल्ली दाखिल हो लिए और यहां के सियासी दंगल में जोरदार पलटवार के अंदाज में उतर गए। अपनी सोची समझी रणनीति के मुताबिक वो पहले दिल्ली सरकार, उसके बाद केंद्र सरकार पर जमकर बरसे। उन्होंने झुग्गी वासियों को याद दिलाते हुए कहा कि, ‘चुनाव से पहले मैंने दिल्ली के गरीबों और झुग्गीवालों के लिए वीडियो जारी करके कहा था कि अगर बीजेपी की सरकार आ गई तो यह एक साल में ही झुग्गियां तोड़ देंगे। आज वही हो रहा है। ये सारी झुग्गियां तोड़ने का इरादा लेकर आए हैं।’
इससे स्पष्ट है कि केजरीवाल का मकसद साफ है कि अब दिल्ली में दो-दो हाथ करने हेतु वो फिर से उतर गए हैं। ऐसे में सवाल फिर वही कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि केजरीवाल को फिर दिल्ली के दंगल में उतरने का मौका मिल गया? आखिर झुग्गियों पर बुलडोजर चला तो केजरीवाल को क्यों चुभा? जिससे वो फिर से दिल्ली के सियासी दंगल में उतरने को मजबूर हुए।
समझा जाता है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की सरकार ने यहां पर वो कार्ड चल दिया जो केजरीवाल के लिए मुसीबत बन सकता था। क्योंकि अगर वे इस वक्त नहीं बोलते, तो यहां की झुग्गियों का एक बड़ा वर्ग उनसे छूट जाता। इसलिए केजरीवाल ने कहा भी है कि, "दिल्ली की झुग्गियों में 40 लाख लोग रहते हैं, यदि ये इकट्ठे हो गए तो किसी की औकात नहीं है जो आपकी झुग्गी तोड़ने आ जाए।"
राजनीतिक मामलों के जानकार बताते हैं कि यह सारा खेल इन 40 लाख लोगों यानी वोटर्स का है, जिसके चलते अरविंद केजरीवाल पुनः अपना सियासी मैदान पाने और बचाने, दोनों के लिए एक सोची समझी रणनीति के तहत पुनः मैदान में कूदे हैं। इस प्रकार यदि विधानसभा चुनावों के आंकड़े देखें तो 2015 में आम आदमी पार्टी यानी आप को स्लम वोट में लगभग 66 प्रतिशत मिला था। वहीं, सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक, 2020 में आम आदमी पार्टी को 61 प्रतिशत वोट यहां मिले। लेकिन 2025 में यह आंकड़ा बदलता दिखा। सियासी कोढ़ में खाज यह कि सबसे ज्यादा स्लम वाली 10 सीटों में 7 बीजेपी को मिल गईं, जो आपके हार की वजह बनी। लेकिन बीजेपी ने उनसे जो गद्दारी की है, उसका सियासी मजा तो वे तब चखाएंगे, जब पुनः यहां पर कोई चुनाव होंगे।
बताते चलें कि दिल्ली में 675 झुग्गी झोपड़ियां हैं, जहां लगभग तीन लाख परिवार रहते हैं। ये कॉलोनियां यहां की कुल 70 विधानसभा क्षेत्रों में से 62 विधानसभा क्षेत्रों में फैली हुई हैं। खास बात यह कि इन विधानसभा क्षेत्रों में तकरीबन 40 फीसदी वोटर झुग्गी झोपड़ियों वाले हैं, जो किसी भी चुनाव में जीत हार तय करने की स्थिति में होते हैं। कुछ यही वजह है कि केजरीवाल समझते हैं कि अगर इन्हें छोड़ दिया तो दिल्ली का चुनाव आगे जीतना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि इनमें से बहुत सारे वोटर्स केजरीवाल के कोर वोटर्स रहे हैं। आप की फ्री बिजली-पानी, बस यात्रा, मोहल्ला क्लीनिक जैसी सुविधाएं, इन लोगों को लुभाती रही हैं और केजरीवाल सरकार के ये बड़े लाभार्थी रहे हैं। इसलिए अब झुग्गी झोपड़ियों पर बुलडोजर चलने का मतलब है कि इन वोटर्स में यह भय पैदा किया जा रहा है। चतुर राजनीतिक खिलाड़ी केजरीवाल इस स्थिति का लाभ लेना चाहते हैं।
वहीं, दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने केजरीवाल की इस रैली पर तीखा पलटवार करते हुए कहा कि, यह हारे हुए ठुकराए हुए और दिल्ली से भगाए गए लोगों का जमावड़ा है। किराए के लोगों को बुलाकर भीड़ इकट्ठा की गई। ये अर्बन नक्सलवादी विचारधारा मानने वाले लोग हैं। अरविंद केजरीवाल और उनकी पूरी टीम में अराजकवादी लोग हैं जो हमेशा संविधान के खिलाफ जाकर बात करते हैं।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक