एक बच्चा जो अपने झोले में सामान समेट रहा है तो मां तपाक से पूछ पड़ती है- कहां जाने की तैयारी हो रही है? जवाब देता है एक ऐसी सर्वोच्च पीठ की तरफ जाने का जिसे सुनकर यकीन न हो। फिर कुछ लोग पहुंचते हैं और उसके सामने एक-एक कर सामान सजा देते हैं। वो कुछ चुनता है, कुछ फेंकता है। फिर उसकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाती है। केवल उसकी ही नहीं बल्कि उसके पूरे मूल्क की भी जिंदगी बदल जाती है। एक महाशक्ति के खूंखार पंजे जो उसकी तरफ बढ़ चले थे। हमारी इस दुनिया में हजारों धर्म मौजूद हैं और इनमें से एक बुद्ध धर्म है। ये ईसाई, इस्लाम, और हिंदू धर्म के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म माना जाता है। दरअसल, बौद्ध धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। जो आज से करीब 2500 साल पहले गौतम बुद्ध के द्वारा भारत में शुरू किया गया था। आज दुनिया की 7 प्रतिशत से ज्यादा आबादी यानी करीब 54 करोड़ लोग इस धर्म को मानते हैं। दुनिया में बौद्ध धर्म की शुरुआत आखिर किस तरह से हुई। तिब्बती बौद्ध धर्म आखिर क्यों चीन के निशाने पर है। नए ‘दलाई लामा’ की नियुक्ति से पहले क्या करना चाहता है चीन?
तिब्बत और चीन
तिब्बत को लेकर चीन हमेशा से ही काफी चौकस रहता है। इसकी असली वजह यह है कि तिब्बत उसका धोखे से कब्जाया हुआ क्षेत्र है। आकार के लिहाज से तिब्बत और चीन में काफी अंतर नहीं है। चीन की सेना ने यहां पर लोगों का शोषण किया और आखिर में वहां के प्रशासक दलाई लामा को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा था। राजनीतिक दृष्टि से तिब्बत कभी चीन का अंग नहीं रहा। ईसा से एक शताब्दी पूर्व मगध के एक राजा ने तिब्बत के विभिन्न समुदायों को संगठित किया था। यह सम्बंध अनेक वर्षों तक बना रहा। 7वीं शताब्दी तक मध्य एशिया के एक भू-भाग पर तिब्बत का आधिपत्य रहा। उन दिनों सोंगत्सेन गैम्पो तिब्बत के शासक हुआ करते थे। यह साम्रज्य उत्तर में तुर्कीस्तान और पश्चिम में मध्य एशिया तक फैला था। 763 में तिब्बतियों ने चीन की तत्कालीन राजधानी चांग यानी आज के शियान को अपने कब्जे में ले लिया था। तब से लेकर ढाई सौ सालों तक चीन की राजधानी तिब्बत के अधीन रही थी। चंगेज खान और मंगोल साम्रज्य का नाम इतिहास में आपने खूब पढ़ा होगा। 12वीं सदी के दौर में मंगोल साम्राज्य विस्तार के दौर में मंगोल ने चीन पर हमला कर दिया और 1280 के करीब चीन ने मंगोल के सामने घुटने टेक दिए।
दलाई लामा कौन हैं?
दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म में सर्वोच्च आध्यात्मिक व्यक्ति हैं और उन्हें करुणा के बोधिसत्व अवलोकितेश्वर का मानव अवतार माना जाता है। वर्तमान और 14वें दलाई लामा, तेनज़िन ग्यात्सो का जन्म 1935 में अमदो (अब चीन के किंघई प्रांत में) में हुआ था। दो साल की उम्र में उन्हें पुनर्जन्म के रूप में पहचाना गया और 1940 में आधिकारिक तौर पर ल्हासा में स्थापित किया गया। दलाई लामाओं ने ऐतिहासिक रूप से तिब्बत में आध्यात्मिक और राजनीतिक दोनों तरह के अधिकार रखे हैं। 1950 में चीन द्वारा इस क्षेत्र पर नियंत्रण करने के बाद यह बदल गया। तब से वे धर्मशाला में निर्वासन में रह रहे हैं, जहाँ वे तिब्बती बौद्धों के आध्यात्मिक नेता और चीनी नियंत्रण के प्रति उनके प्रतिरोध के वैश्विक चेहरे के रूप में सेवा कर रहे हैं।
दलाई लामा चुनने की पारंपरिक प्रक्रिया क्या है?
नए दलाई लामा का चयन एक पवित्र और जटिल प्रक्रिया है, जो पुनर्जन्म में तिब्बती बौद्ध विश्वास पर आधारित है। दलाई लामा के मरने के बाद, वरिष्ठ भिक्षु संकेतों, दर्शन और शगुन की तलाश करते हैं। वे दाह संस्कार से निकलने वाले धुएं की दिशा का अध्ययन करते हैं, दैवज्ञों से सलाह लेते हैं और सपनों की व्याख्या करते हैं। अक्सर, खोज ल्हामो ला-त्सो पर केंद्रित होती है, जो एक पवित्र झील है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह अगले पुनर्जन्म के स्थान के बारे में दर्शन प्रदान करती है। एक बार जब संभावित बच्चा मिल जाता है, तो उसे वस्तुओं की पहचान करने के लिए कहा जाता है, जिनमें से कुछ दिवंगत दलाई लामा की थीं। सही पहचान को आध्यात्मिक पुष्टि के रूप में लिया जाता है। यह प्रक्रिया आध्यात्मिक, प्रतीकात्मक और तिब्बती परंपरा से गहराई से जुड़ी हुई है।
वर्तमान दलाई लामा को कैसे चुना गया?
वर्तमान दलाई लामा की खोज इस तरह से की गई थी। 13वें दलाई लामा के शरीर को राज्य में रखे जाने के बाद, भिक्षुओं ने उनके सिर की दिशा पर ध्यान दिया। ल्हामो ला-त्सो में एक दर्शन ने उन्हें तक्त्सेर गांव तक पहुंचाया, जहां ल्हामो थोंडुप नाम के दो वर्षीय लड़के ने पिछले दलाई लामा से संबंधित वस्तुओं की सही पहचान की। उन्हें मान्यता दी गई और 14वें दलाई लामा के रूप में स्थापित किया गया, बाद में उनका नाम तेनज़िन ग्यात्सो रखा गया। लेकिन आज इस प्रक्रिया को दोहराने में एक बड़ी चुनौती है।
क्या कभी कोई दलाई लामा तिब्बत के बाहर पैदा हुआ है?
तिब्बत के बाहर दलाई लामाओं के जन्म के दो ऐतिहासिक उदाहरण हैं। चौथे दलाई लामा, योंतेन ग्यात्सो का जन्म 1589 में मंगोलिया में हुआ था। छठे दलाई लामा, त्सांगयांग ग्यात्सो का जन्म भारत के वर्तमान अरुणाचल प्रदेश में हुआ था। दोनों को पारंपरिक व्यवस्था के भीतर मान्यता दी गई और स्वीकार किया गया। यह चीन के इस दावे को कमजोर करता है कि अगले दलाई लामा का जन्म उसकी सीमाओं के भीतर ही होना चाहिए।
पहली बार बन सकते हैं 2 दलाई लामा
तनाव के बीच विशेषज्ञ दो दलाई लामा की आशंका जता रहे हैं। एक जिन्हें निर्वासित तिब्बती स्वतंत्र रूप से चुनेंगे। दूसरा जिसे बीजिंग अपनी कठपुतली के तौर पर पेश करेगा। ये ऐसे संकट को जन्म दे सकता है जो तिब्बती बौद्ध धर्म के भविष्य को हमेशा के लिए बदल देगा। दुनिया को आज दलाई लामा के शांति और करुणा की पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है और सबकी नजरें अब धर्मशाला पर टिकी हैं कि वो उत्तराधिकारी की प्रक्रिया को लेकर जल्द स्थिति साफ करे। लेकिन जिस तरह से चीन इसमें दखल दे रहा है वो आशंका को भ जन्म देता है।