यूपी-हरियाणा के किसानों ने बंजर दियारा को बनाया उपजाऊ:बगहा में तरबूज और सब्जियों की कर रहे खेती, किसान बोले-कंबल बेचने आए थे

पश्चिम चंपारण के दियारा क्षेत्र में एक नई क्रांति की शुरुआत हो रही है। जहां एक तरफ बिहार से लोग रोजगार की तलाश में बाहर जा रहे हैं, वहीं दूसरे राज्यों के किसान यहां नई उम्मीदें बो रहे हैं। बता दें कि यह इलाका एक समय में अपराध का गढ़ रहा दियारा क्षेत्र आज विकास की नई कहानी लिख रहा है। जहां अब उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली से आए किसान यहां अपने परिवार के साथ नई जिंदगी शुरू कर रहे हैं। वे झोपड़ियों में रहकर तरबूज और सब्जियों की खेती कर रहे हैं। शामली से आई सजदा की कहानी इस बदलाव की जीती-जागती मिसाल है। वह कंबल बेचने आई थीं, लेकिन दियारा की सस्ती और उपजाऊ जमीन देखकर यहीं बस गईं। आज उनके साथ 100 से ज्यादा परिवार यहां खेती कर रहे हैं। कंबल बेचने आए थे किसान सजदा बताती हैं, “हम तो परिवार के साथ कंबल बेचने आए थे। दियारा की ज़मीन देखी, सस्ती भी थी और उपजाऊ भी। सोचा क्यों न यहीं पर कुछ अपना शुरू किया जाए।” सजदा का यह सपना अब कई परिवारों की सच्चाई बन चुका है। आज वे खुद खेती कर रही हैं। इन किसानों ने अस्थायी झोपड़ियां बनाकर एक छोटा सा गांव बसा लिया है। जहां पहले लोग दिन में भी जाने से डरते थे, वहां अब बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और पुरुष मिलजुल कर रह रहे हैं। सुबह खेतों की हरियाली और शाम को मेहनत के बाद मिलने वाला सुकून इस जगह की नई पहचान बन गया है। यह कहानी सिर्फ खेती की नहीं, बल्कि उम्मीदों की भी है। जहां मेहनत और ईमानदारी से एक नई शुरुआत की जा सकती है। दियारा की यह बदलती तस्वीर बताती है कि विकास की राह पर चलने के लिए कभी देर नहीं होती।

Apr 15, 2025 - 08:46
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यूपी-हरियाणा के किसानों ने बंजर दियारा को बनाया उपजाऊ:बगहा में तरबूज और सब्जियों की कर रहे खेती, किसान बोले-कंबल बेचने आए थे
पश्चिम चंपारण के दियारा क्षेत्र में एक नई क्रांति की शुरुआत हो रही है। जहां एक तरफ बिहार से लोग रोजगार की तलाश में बाहर जा रहे हैं, वहीं दूसरे राज्यों के किसान यहां नई उम्मीदें बो रहे हैं। बता दें कि यह इलाका एक समय में अपराध का गढ़ रहा दियारा क्षेत्र आज विकास की नई कहानी लिख रहा है। जहां अब उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली से आए किसान यहां अपने परिवार के साथ नई जिंदगी शुरू कर रहे हैं। वे झोपड़ियों में रहकर तरबूज और सब्जियों की खेती कर रहे हैं। शामली से आई सजदा की कहानी इस बदलाव की जीती-जागती मिसाल है। वह कंबल बेचने आई थीं, लेकिन दियारा की सस्ती और उपजाऊ जमीन देखकर यहीं बस गईं। आज उनके साथ 100 से ज्यादा परिवार यहां खेती कर रहे हैं। कंबल बेचने आए थे किसान सजदा बताती हैं, “हम तो परिवार के साथ कंबल बेचने आए थे। दियारा की ज़मीन देखी, सस्ती भी थी और उपजाऊ भी। सोचा क्यों न यहीं पर कुछ अपना शुरू किया जाए।” सजदा का यह सपना अब कई परिवारों की सच्चाई बन चुका है। आज वे खुद खेती कर रही हैं। इन किसानों ने अस्थायी झोपड़ियां बनाकर एक छोटा सा गांव बसा लिया है। जहां पहले लोग दिन में भी जाने से डरते थे, वहां अब बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग और पुरुष मिलजुल कर रह रहे हैं। सुबह खेतों की हरियाली और शाम को मेहनत के बाद मिलने वाला सुकून इस जगह की नई पहचान बन गया है। यह कहानी सिर्फ खेती की नहीं, बल्कि उम्मीदों की भी है। जहां मेहनत और ईमानदारी से एक नई शुरुआत की जा सकती है। दियारा की यह बदलती तस्वीर बताती है कि विकास की राह पर चलने के लिए कभी देर नहीं होती।