भारत ने Rohingya Muslims को जैकेट पहना कर समुद्र में फेंक दिया, ये आरोप सुनते ही Supreme Court ने क्या टिप्पणी की

रोहिंग्या मुसलमान भारत की सुरक्षा और विभिन्न राज्यों की कानून व्यवस्था के लिए लगातार चुनौतियां पेश कर रहे हैं इसलिए इन्हें देश से बाहर निकालने की मांग होती रहती है लेकिन हमारे देश में कुछ ऐसे लोग हैं जो चाहते हैं कि रोहिंग्या यहीं रहें और यहां की नागरिकता भी हासिल कर लें। ऐसे लोगों को उच्चतम न्यायालय ने जो फटकार लगाई है वह ऐतिहासिक है। हम आपको बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उन याचिकाकर्ताओं को कड़ी फटकार लगाई, जिन्होंने दावा किया था कि महिलाओं और बच्चों सहित 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमा निर्वासित करने के लिए अंडमान सागर में छोड़ दिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा, “जब देश कठिन समय से गुजर रहा है, तो आप काल्पनिक विचारों के साथ सामने आ रहे हैं।” न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मोहम्मद इस्माइल और अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से उसके समक्ष पेश सामग्री की प्रमाणिकता पर भी सवाल उठाया तथा रोहिंग्या शरणार्थियों के निर्वासन पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्वेज से कहा, “जब देश कठिन समय से गुजर रहा है, तो आप ऐसे काल्पनिक विचारों के साथ सामने आ रहे हैं।” पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सामग्री सोशल मीडिया से उठाई गई प्रतीत होती है और रोहिंग्या शरणार्थियों को समुद्र में छोड़कर यातना देने और निर्वासित करने के दावों को “महज आरोप” करार दिया। न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने पूछा, “आरोपों को प्रमाणित करने वाली सामग्री कहां है?”पीठ ने कहा कि निर्वासित रोहिंग्या शरणार्थियों और दिल्ली निवासी याचिकाकर्ता के बीच फोन पर हुई कथित बातचीत की रिकॉर्डिंग सत्यापित नहीं है। न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने कहा, “क्या किसी ने इस बात को सत्यापित किया है कि फोन कॉल म्यांमा से आए थे? हमने एक मामले की सुनवाई की थी, जिसमें झारखंड के जामताड़ा से अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के फोन नंबर से कॉल किए गए थे।” गोंजाल्वेज ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उसने भी इस मुद्दे का संज्ञान लिया है और मामले की जांच शुरू की है। इस पर पीठ ने कहा, “बाहर बैठे लोग हमारे प्राधिकारियों और संप्रभुता को निर्देशित नहीं कर सकते।” पीठ ने हालांकि, गोंजाल्वेज को याचिका की प्रति अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल के कार्यालय को सौंपने का निर्देश दिया, ताकि इसे सरकार में संबंधित प्राधिकारियों तक पहुंचाया जा सके। पीठ ने मामले की सुनवाई 31 जुलाई को तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध कर दी।इसे भी पढ़ें: Yes Milord: हल्के में ले लिया था क्या? राष्ट्रपति द्वारा 14 सवालों की लिस्ट SC को भेजने के बाद आगे क्या संभावनाएं हो सकती हैं?इसके साथ ही उच्चम न्यायालय रोहिंग्या मुसलमानों की कथित निष्कासन प्रक्रिया को रोकने के लिए बार-बार जनहित याचिका (PIL) दायर किए जाने से खिन्न हुआ और वरिष्ठ अधिवक्ता गोंजाल्वेज से कहा कि वह बिना किसी नए तथ्य के, सुप्रीम कोर्ट के 8 मई के उस निर्णय में संशोधन की मांग करते हुए बार-बार एक ही मुद्दे पर PIL दाखिल नहीं कर सकते जिसमें राहत देने से इंकार कर दिया गया था। हम आपको याद दिला दें कि 8 मई को जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने, गोंजाल्वेज और प्रशांत भूषण की ज़ोरदार दलीलों के बावजूद, रोहिंग्याओं के संभावित निष्कासन पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया था। पीठ ने कहा था कि रोहिंग्या भारतीय नागरिक नहीं हैं, अतः उन्हें देश में कहीं भी रहने का अधिकार नहीं है।हम आपको बता दें कि गोंजाल्वेज ने कहा था कि 8 मई को ही केंद्र सरकार ने 28 रोहिंग्याओं को निर्वासित कर दिया, उन्हें हथकड़ी पहनाकर अंडमान द्वीप ले जाया गया, लाइफ जैकेट पहनाई गईं और म्यांमार की ओर धकेल दिया गया। किसी तरह म्यांमार पहुँचने के बाद उन्होंने मछुआरों की मदद से दिल्ली में अपने रिश्तेदारों को फोन कर यह सूचना दी कि उनकी जान को तत्काल खतरा है। इस पर पीठ ने कहा कि ये महज आरोप हैं, और यह कौन सत्यापित करेगा कि ये तथ्य याचिकाकर्ता की जानकारी के अनुसार सही हैं। गोंजाल्वेज ने रोहिंग्याओं को राहत दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के चकमा शरणार्थियों की सुरक्षा संबंधी एक निर्णय का हवाला भी दिया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के एक आदेश का भी उल्लेख करते हुए कहा कि रोहिंग्या प्रवासी नहीं बल्कि शरणार्थी हैं, जिनके जीवन की रक्षा करना संयुक्त राष्ट्र की जिम्मेदारी है। इस पर पीठ ने कहा, "हम आज संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट पर टिप्पणी नहीं करना चाहते। हम 31 जुलाई को इसका उत्तर देंगे, जब इस याचिका को लंबित याचिका के साथ सुनवाई के लिए लिया जाएगा।" इस पर गोंजाल्वेज ने कहा कि इस बीच सरकार और रोहिंग्याओं को निष्कासित कर देगी, जिनकी संख्या देश के विभिन्न हिस्सों में 8,000 से अधिक है और दिल्ली में लगभग 800 हैं।

May 17, 2025 - 16:43
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भारत ने Rohingya Muslims को जैकेट पहना कर समुद्र में फेंक दिया, ये आरोप सुनते ही Supreme Court ने क्या टिप्पणी की
रोहिंग्या मुसलमान भारत की सुरक्षा और विभिन्न राज्यों की कानून व्यवस्था के लिए लगातार चुनौतियां पेश कर रहे हैं इसलिए इन्हें देश से बाहर निकालने की मांग होती रहती है लेकिन हमारे देश में कुछ ऐसे लोग हैं जो चाहते हैं कि रोहिंग्या यहीं रहें और यहां की नागरिकता भी हासिल कर लें। ऐसे लोगों को उच्चतम न्यायालय ने जो फटकार लगाई है वह ऐतिहासिक है। हम आपको बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उन याचिकाकर्ताओं को कड़ी फटकार लगाई, जिन्होंने दावा किया था कि महिलाओं और बच्चों सहित 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमा निर्वासित करने के लिए अंडमान सागर में छोड़ दिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा, “जब देश कठिन समय से गुजर रहा है, तो आप काल्पनिक विचारों के साथ सामने आ रहे हैं।” न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मोहम्मद इस्माइल और अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से उसके समक्ष पेश सामग्री की प्रमाणिकता पर भी सवाल उठाया तथा रोहिंग्या शरणार्थियों के निर्वासन पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्वेज से कहा, “जब देश कठिन समय से गुजर रहा है, तो आप ऐसे काल्पनिक विचारों के साथ सामने आ रहे हैं।” पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सामग्री सोशल मीडिया से उठाई गई प्रतीत होती है और रोहिंग्या शरणार्थियों को समुद्र में छोड़कर यातना देने और निर्वासित करने के दावों को “महज आरोप” करार दिया। न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने पूछा, “आरोपों को प्रमाणित करने वाली सामग्री कहां है?”

पीठ ने कहा कि निर्वासित रोहिंग्या शरणार्थियों और दिल्ली निवासी याचिकाकर्ता के बीच फोन पर हुई कथित बातचीत की रिकॉर्डिंग सत्यापित नहीं है। न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने कहा, “क्या किसी ने इस बात को सत्यापित किया है कि फोन कॉल म्यांमा से आए थे? हमने एक मामले की सुनवाई की थी, जिसमें झारखंड के जामताड़ा से अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के फोन नंबर से कॉल किए गए थे।” गोंजाल्वेज ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उसने भी इस मुद्दे का संज्ञान लिया है और मामले की जांच शुरू की है। इस पर पीठ ने कहा, “बाहर बैठे लोग हमारे प्राधिकारियों और संप्रभुता को निर्देशित नहीं कर सकते।” पीठ ने हालांकि, गोंजाल्वेज को याचिका की प्रति अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल के कार्यालय को सौंपने का निर्देश दिया, ताकि इसे सरकार में संबंधित प्राधिकारियों तक पहुंचाया जा सके। पीठ ने मामले की सुनवाई 31 जुलाई को तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध कर दी।

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इसके साथ ही उच्चम न्यायालय रोहिंग्या मुसलमानों की कथित निष्कासन प्रक्रिया को रोकने के लिए बार-बार जनहित याचिका (PIL) दायर किए जाने से खिन्न हुआ और वरिष्ठ अधिवक्ता गोंजाल्वेज से कहा कि वह बिना किसी नए तथ्य के, सुप्रीम कोर्ट के 8 मई के उस निर्णय में संशोधन की मांग करते हुए बार-बार एक ही मुद्दे पर PIL दाखिल नहीं कर सकते जिसमें राहत देने से इंकार कर दिया गया था। हम आपको याद दिला दें कि 8 मई को जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने, गोंजाल्वेज और प्रशांत भूषण की ज़ोरदार दलीलों के बावजूद, रोहिंग्याओं के संभावित निष्कासन पर अंतरिम रोक लगाने से इंकार कर दिया था। पीठ ने कहा था कि रोहिंग्या भारतीय नागरिक नहीं हैं, अतः उन्हें देश में कहीं भी रहने का अधिकार नहीं है।

हम आपको बता दें कि गोंजाल्वेज ने कहा था कि 8 मई को ही केंद्र सरकार ने 28 रोहिंग्याओं को निर्वासित कर दिया, उन्हें हथकड़ी पहनाकर अंडमान द्वीप ले जाया गया, लाइफ जैकेट पहनाई गईं और म्यांमार की ओर धकेल दिया गया। किसी तरह म्यांमार पहुँचने के बाद उन्होंने मछुआरों की मदद से दिल्ली में अपने रिश्तेदारों को फोन कर यह सूचना दी कि उनकी जान को तत्काल खतरा है। इस पर पीठ ने कहा कि ये महज आरोप हैं, और यह कौन सत्यापित करेगा कि ये तथ्य याचिकाकर्ता की जानकारी के अनुसार सही हैं। गोंजाल्वेज ने रोहिंग्याओं को राहत दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के चकमा शरणार्थियों की सुरक्षा संबंधी एक निर्णय का हवाला भी दिया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के एक आदेश का भी उल्लेख करते हुए कहा कि रोहिंग्या प्रवासी नहीं बल्कि शरणार्थी हैं, जिनके जीवन की रक्षा करना संयुक्त राष्ट्र की जिम्मेदारी है। इस पर पीठ ने कहा, "हम आज संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट पर टिप्पणी नहीं करना चाहते। हम 31 जुलाई को इसका उत्तर देंगे, जब इस याचिका को लंबित याचिका के साथ सुनवाई के लिए लिया जाएगा।" इस पर गोंजाल्वेज ने कहा कि इस बीच सरकार और रोहिंग्याओं को निष्कासित कर देगी, जिनकी संख्या देश के विभिन्न हिस्सों में 8,000 से अधिक है और दिल्ली में लगभग 800 हैं।