सनातन धर्म में करवीर व्रत का विशेष महत्व है। करवीर व्रत में सूर्य की पूजा एवं साधना होती है। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास की शुक्ल प्रतिपदा के दिन करवीर व्रत संपन्न होता है और सूर्य की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से सभी प्रकार के संकट से मुक्ति मिलती है और मनुष्य को सूर्यलोक की प्राप्ति होती है तो आइए हम आपको करवीर व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जानें करवीर व्रत के बारे में
सूर्य को समर्पित करवीर व्रत अत्यंत शुभ फलदायी माना जाता है। इस व्रत के बारे में प्रसिद्ध है कि इसे सावित्री, सरस्वती, सत्यभामा और दमयंती जैसी महान स्त्रियों ने भी किया था। ये व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को किया जाता है। इस व्रत में कनेर के वृक्ष की भी पूजा की जाती है। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास की शुक्ल प्रतिपदा के दिन करवीर व्रत संपन्न होता है और सूर्य की पूजा की जाती है। इस वर्ष 28 मई 2025 को करवीर व्रत किया जाएगा। हिन्दू धर्म में सूर्य देव को आत्मा का स्वरुप माना गया है। वह साक्षात प्रकृति के पालक माने जाते हैं, जिनकी अपार शक्ति, गति और ऊर्जा संसार का हर व्यक्ति को सकारात्मक फल देता है। सूर्य देव वनस्पति की जीवन शक्ति हैं। धार्मिक मान्यताओं अनुसार सूर्य देव समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने वाले हैं। सूर्य का पूजन करने व सूर्य को जल देने के लिए नदी, जलाशय में खड़े होकर हाथों की अंजली बना कर अथवा पात्र में भर कर जल से अर्घ्य दिया देना चाहिए। करवीर व्रत अत्यंत ही उत्तम व्रतों की श्रेणी में आता है।
सूर्य की शक्ति पाने का अवसर है करवीर व्रत
पंडितों के अनुसार करवीर व्रत एक प्रकार से जीवन में शक्ति और प्रकाश के साथ हमारे जीवन को जोड़ने का पर्व भी है। इस दिन सूर्य के देव के नामों का स्मरण करना चाहिये। कलश में गुड़ अथवा गेहूं भर कर दान करना अत्यंत शुभ प्रभावदायक होता है। सूर्य देव का पूजन करने से हमें सूर्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। करवीर व्रत का प्रभाव तुरंत फल देने वाला होता है। वेदों में सूर्य की उपासना के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन प्राप्त होता है। वेदो में सूर्य की स्तुति के अनेक सूक्त प्राप्त होते हैं।
करवीर व्रत से जुड़ी अन्य पौराणिक कथाएं
शास्त्रों के अनुसार करवीर व्रत के संदर्भ में कुछ अन्य कथाएं भी प्रचलित हैं। इनमें से कुछ का संबंध देवी शक्ति से जोड़ा गया है। यह कथा इस प्रकार है की कौलासुर नाम का एक दैत्य था, उसकी शक्ति बहुत अधिक बढ़ गयी थी उसने हर तरफ अत्याचार फैला रखा था। अपनी शक्ति को और भी बढ़ाने के लिए उसने कठोर तपस्या की थी और उसे संपूर्ण विजय का आशीर्वाद प्राप्त होता है। लेकिन इसके साथ ही उसने वरदान प्राप्त किया कि वह केवल स्त्री द्वारा ही मारा जा सके। अपने वरदान के प्राप्ति के पश्चात उसने तीनों लोकों में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास आरंभ किया। ऐसे में देवों एवं समस्त लोकों की सुरक्षा हेतु विष्णु स्वयं महालक्ष्मी रूप में प्रकट होते हैं और सिंह पर आरूढ़ होकर उस राक्षस को युद्ध में परास्त किया। कोलासुर ने अपनी मृत्यु से पूर्व श्री शक्ति देवी से वर याचना की कि उस क्षेत्र को उसका नाम प्राप्त हो और देवी वहीं स्थित हों। ऐसे में देवी ने वर दिया और स्वयं भी वहीं पर स्थित हो जाती हैं। कोलासुर का वध करने के पश्चात देवी को कोलासुरा मर्दिनी के नाम से भी पुकारा जाता है।
करवीर पूजा में कनेर वृक्ष की पूजा से मिलेगा लाभ
शास्त्रों में करवीर पूजन में कनेर के वृक्ष का पूजन करने का भी विधान बताया गया है। कनेर वृक्ष के पुष्प को भगवान शिव के पूजन में भी मुख्य रुप से उपयोग किया जाता है। कनेर वृक्ष का पूजन करने के लिए प्रातकाल स्नान इत्यादि से निवृत होकर कनेर वृक्ष का पूजन करना चाहिये। कनेर के वृक्ष पर जल अर्पित करना चाहिये, वृक्ष को लाल रंग के धागे से बांधा जाता है। लाल रंग का वस्त्र अर्पित किया जाता है, कनेर के समीप घी का दीपक जलाना चाहिये और धूप, पुष्प इत्यादि से पूजा करनी चाहिये। कनेर वृक्ष के पुष्पों को भगवान शिव पर भी चढ़ाना चाहिये, यदि संभव हो सके तो आज के दिन कनेर वृक्ष को लगाने से सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस व्रत में कनेर के वृक्ष की भी पूजा करने का विधान है। इस पूजा को भी नियम पूर्वक करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले वृक्ष के पास सफाई कर जल से शुद्ध करें। अब कनेर के वृक्ष के तने पर लाल मौलि बांधें और उसको जल अर्पित करते हुए लाल वस्त्र उढ़ायें। अब गंध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य अर्पित करें। किसी पात्र में सप्तधान्य यानि सात प्रकार के अनाज और फल आदि रखकर वृक्ष को अर्पित करें।
करवीर व्रत पर ऐसे करें पूजा, होगा फलदायी
शास्त्रों के अनुसार करवीर व्रत का हिन्दू धर्म में खास महत्व होता है, इसलिए इस दिन प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त हो, स्वच्छ वस्त्र धारण कर सूर्य देव का स्मरण करें। इसके बाद सूर्यनारायण को तीन बार अर्घ्य देकर प्रणाम करें। अब सूर्य के मंत्रों का जाप श्रद्धापूर्वक करें। विष्य पुराण के अनुसार इस दिन सूर्य भगवान को यदि एक आक का फूल अर्पण कर दिया जाए तो सोने की दस अशर्फियां चढ़ाने का फल मिलता है। भगवान आदित्य को चढ़ाने योग्य कुछ फूलों का उल्लेख वीर मित्रोदय, पूजा प्रकाश में भी है। करवीर व्रत में सूर्य को रात्रि में कदम्ब के फूल और मुकुर को अर्पण करना चाहिए तथा दिन में शेष अन्य सभी फूल चढ़ाए जा सकते हैं। बेला का फूल दिन और रात दोनों समय चढ़ाया जा सकता है। कुछ फूल सूर्य आराधना में निषिद्ध हैं। ये हैं गुंजा, धतूरा, अपराजिता, भटकटैया और तगर इत्यादि। इनका प्रयोग भूल कर भी नहीं करना चाहिए। इस व्रत में एक समय सूर्य प्रकाश रहते ही भोजन करें। इस दिन नमकीन और तेल युक्त भोजन ना करें। सूर्य अस्त होने के बाद भोजन नहीं करना चाहिए।
जानें करवीर पूजा का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार करवीर नाम को सूर्य और श्री लक्ष्मी देवी शक्ति के साथ संबंधित माना गया है। पद्मपुराण, देवी पुराण इत्यादि में इस शब्द का संबंध देखने को मिलता है। इस दिन किया गया भक्ति साधना एवं दान इत्यादि का कार्य बहुत ही शुभफलदायक होता है। करवीर पूजा में वृक्ष पूजा का भी विशेष महत्व दिया गया है। करवीर व्रत की महत्ता के विषय में बताया गया है की इस व्रत को देवी सावित्री, दमयंती और सत्यभामा ने भी किया था। इस व्रत के प्रभाव से उन्हें जीवन में संकटों की समाप्ति होती है और सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस व्रत को करने से सूर्य लोक की प्राप्ति होती है, संतान सुख प्राप्त होता है और जीवन में किसी भी प्रकार का रोग परेशान नहीं करता है, आरोग्य की प्राप्ति होती है।
- प्रज्ञा पाण्डेय