भारत और पाकिस्तान के बीच जारी भीषण तनाव के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी इंटरनेशनल मानेटरी फंड (आईएमएफ) की ओर से पाकिस्तान के लिए बेलआउट पैकेज को मंजूरी दे दी गई। इसके कारण इस क्षेत्र में तनाव बढ़ने की आशंका बनी हुई है। देखा जाए तो भारत की यह आशंका निराधार और निरर्थक भी नहीं, क्योंकि यह जगजाहिर हो चुका है कि पाकिस्तान की आर्थिक नीतियों में उसकी सेना की दखलंदाजी काफी ज्यादा रहती है। साथ ही, पिछले लंबे समय से ऐसे प्रमाण भी लगातार मिलते रहे हैं कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मिलने वाली किसी भी प्रकार की आर्थिक मदद का इस्तेमाल पाकिस्तान भारत के विरूद्ध आतंकवादियों को पालने-पोसने एवं आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देकर निर्दोष लोगों की हत्या कराने के लिए करता रहा है। समय-समय पर इसके प्रमाण मिलते भी रहे हैं। फिलहाल, इसका ताजा उदाहरण पहलगाम के बैसरण घाटी की वह दिल दहला देने वाली घटना है, जिसमें आतंकियों ने 26 निर्दोष पर्यटकों की उनके परिवार वालों विशेषकर स्त्रियों और बच्चों के समक्ष उनका धर्म पूछ-पूछकर अत्यंत बेरहमी से हत्या कर दी थी। वैसे, 2021 में संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में भी इस बात का खुलासा हो चुका है कि पाकिस्तान एक प्रकार से सेना आधारित व्यापार करने वाला देश है, जो दान तथा ऋण में मिले रुपयों का उपयोग भारत के विरूद्ध आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने में करता रहा है।
इतना ही नहीं, पाकिस्तानी सेना अब ‘स्पेशल इन्वेस्टमेंट फैसिलिटेशन काउंसिल’ में भी बड़ी भूमिका निभाने लगी है, जो इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तान में हालात अभी भी सुधरे नहीं हैं, बल्कि दिनोंदिन और बद से बदतर ही होते जा रहे हैं। वहीं, पिछले दिनों पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष मुल्ला आसिम मुनीर का भाषण सुनने के बाद तो यह भी बिल्कुल स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तानी सेना एक पेशेवर सेना नहीं, बल्कि जिहादियों जैसी भाषा बोलने और व्यवहार करने वाला एक धार्मिक संगठन मात्र है, जिसकी कमाई का मुख्य आधार व्यापार है। ऐसे में आईएमएफ से मिलने वाली आर्थिक मदद के कारण भारत के विरूद्ध इस क्षेत्र में सैन्य एवं आतंकी आक्रामकता और क्रूरता का जोखिम पैदा होने की आशंका बढ़ गई है। देखा जाए तो भारत ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अपनी इन्हीं चिंताओं से अवगत कराते हुए यह निवेदन किया था कि पाकिस्तान की आर्थिक हालत सुधारने के नाम पर उसके द्वारा मांगा जाने वाला ऋण आईएमएफ की ओर से मंजूर नहीं किया जाना चाहिए। भारत ने विरोध स्वरूप 09 मई को आईएमएफ के एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (ईएफएफ) लेंडिंग प्रोग्राम पर मतदान भी नहीं किया, जिसमें पाकिस्तान के लिए 01 अरब डॉलर के ईएफएफ लेंडिंग और 1.3 अरब डॉलर के नए लोन पर आईएमएफ द्वारा विचार किया जाना था। भारत की ओर से इस दौरान पाकिस्तान में आईएमएफ कार्यक्रमों की प्रभावशीलता पर अपनी चिंता प्रकट करते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष स्पष्ट शब्दों में कहा भी था कि पाकिस्तान लोन फाइनेंसिंग का इस्तेमाल सीमा पार (मुख्यतः भारत में) आतंकवाद के लिए कर सकता है। इसके बावजूद आईएमएफ ने 09 मई को 02 साल की अवधि के लिए पाकिस्तान को 1.3 अरब डॉलर का नया ऋण प्रदान कर ही दिया।
पाकिस्तान को ऋण देना मानवता विरोधी कदम
बता दें कि पिछले 35 सालों में पाकिस्तान 28 बार आईएमएफ से ऋण प्राप्त कर चुका है। हाल के वर्षों का ही रिकार्ड देखा जाए तो 2019 से पिछले 05 सालों में ही उसने आईएमएफ से 04 बार ऋण लिए हैं। जाहिर है कि ऋण में मिलने वाले रुपयों का इस्तेमाल यदि पाकिस्तान के द्वारा अब तक सही ढंग से किया गया होता तो शायद उसको आईएमएफ के दरवाजे पर बार-बार हाथ फैलाने की जरूरत ही नहीं पड़ती, लेकिन सच तो यही है कि पाकिस्तान आईएमएफ से बार-बार कर्ज लेता है, लेकिन वह उनका उपयोग वास्तविक उद्देश्यों के लिए नहीं, बल्कि भारत के विरूद्ध अपनी जिहादी मानसिकता को प्रदर्शित और प्रारूपित करने के लिए ही करता रहता है। आश्चर्य कि अब यह बात दुनिया में किसी से छुपी हुई भी नहीं है। इस प्रकार, देखा जाए तो जिन परिस्थितियों में सबकुछ जानते-बूझते हुए भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने भारत की चिंताओं और आशंकाओं को दरकिनार कर आईएमएफ की ओर से पाकिस्तान को 11 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक का ऋण देने का प्रस्ताव मंजूर कर लिया, वह एक प्रकार से सांप को दूध पिलाने जैसा प्रतीत होता है, जो केवल भारत विरोधी ही नहीं, बल्कि अंततः मानवता विरोधी ही साबित होने वाला है।
पाकिस्तान को ऋण दिलाने में अमेरिकी पहल कारगर
बता दें कि आईएमएफ से ऋण प्राप्त करने के लिए किसी भी देश को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सदस्य देशों के कुल वोटों का 85 प्रतिशत प्राप्त करना जरूरी होता है। साथ ही, यह जानना भी जरूरी है कि आईएमएफ में सबसे ज्यादा प्रभाव अमेरिकी वोट का होता है, जिसके पास सर्वाधिक 17 प्रतिशत वोटों का भार है। इसकी तुलना में भारत के पास वोटों का भार मात्र 03 प्रतिशत ही है। यही कारण है कि हमारे विरोध के बावजूद पाकिस्तान को आईएमएफ से ऋण मिल गया। देखा जाए तो इस मामले में अमेरिकी पहल का एक बड़ा कारण यह हो सकता है कि हाल के वर्षों में पाकिस्तान लगातार चीन की गोद में बैठकर खेलता रहा है, जिससे अमेरिका बेहद नाराज है। वह चाहता है कि पाकिस्तान चीन से बिदककर उसके पाले में आ जाए। इसीलिए शायद उसने पाकिस्तान को आईएमएफ से ऋण दिलाने में मदद की है, लेकिन उसे यह भी अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि पाकिस्तान तो शुरू से ही कभी चीन तो कभी अमेरिका की गोद में बैठकर खेलता रहा है।
धन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए करेगा पाकिस्तान
पाकिस्तान और अमेरिका की ओर से उसे अपना ही पिट्ठू बनाए रखने के लिए अनेक प्रकार की रियायतें, जिनमें बेशुमार धनादि शामिल हैं, भी दी जाती रही हैं। वैसे, अमेरिका के द्वारा फटकारे जाने पर वह कहता तो जरूर है कि वह आतंकवादियों को पनाह नहीं देगा तथा विदेशों से मिले धन का उपयोग आतंकवाद को बढ़ावा देने में नहीं करेगा, लेकिन क्या हम नहीं जानते कि कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती। जाहिर है कि पाकिस्तान कभी नहीं सुधरने वाला। इसीलिए यह आशंका बनी हुई है कि हमेशा की तरह फिर वह आईएमएफ से मिले धन का उपयोग भारत के विरूद्ध आतंकवादी गतिविधियों यानी ‘प्राॅक्सी वाॅर’ को बढ़ावा देने में करेगा।
एक बड़ा कारण यह भी
आईएमएफ से ऋण मिलने का एक बड़ा कारण यह भी है कि पाकिस्तान ने अमेरिका और चीन समेत कई देशों को अपनी धरती पर सैनिक और व्यापारिक गतिविधियां संचालित करने की छूट दे रखी है। इन देशों में अरब के देश और तुर्किए जैसा कट्टर इस्लामिक सोच वाला देश भी शामिल हैं। बता दें कि अब तक अनेक बार ये तमाम देश पाकिस्तान को अलग से भी ऋण देते रहे हैं। देखा जाए तो अकेले चीन ने ही पाकिस्तान में पाकिस्तान-चीन इकोनोमिक कॉरिडोर बनाने के नाम पर अब तक 65 अरब डॉलर से भी अधिक का ऋण दे चुका है। हालांकि 03 दशकों में भी उक्त इकोनोमिक कॉरिडोर बनकर तैयार नहीं हो सका है।
जी-07 देशों की निरर्थक अपील
सच कहा जाए तो इन परिस्थितियों में ‘ग्रुप ऑफ सेवन’ (जी-07) देशों की भारत एवं पाकिस्तान से सैन्य तनाव कम करने की अपील झूठी और निरर्थक प्रतीत होती है, क्योंकि एक तरफ तो दुनिया के 195 में से 190 देशों वाली संस्था अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष पाकिस्तान को 01 अरब रुपए का ऋण देकर उसको आतंक की फैक्ट्री चलाते रहने के लिए खाद-पानी देने का कार्य कर रही है, वहीं, दूसरी ओर जी-07 देश भारत एवं पाकिस्तान से सैन्य तनाव कम करने की अपील कर शांति स्थापना की खानापूर्ति कर रहे हैं।
- चेतनादित्य आलोक,
वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार, स्तंभकार एवं राजनीतिक विश्लेषक रांची, झारखंड