भारत ने पहली बार संभाले ऐसे हालात:गुजरात के रास्ते राजस्थान में राख के बादल ने एंट्री ली, हर घंटे हवा जांची
इथियोपिया के ज्वालामुखी की राख जब पूर्व दिशा में बढ़ने लगी तो भारत में गंभीर स्थिति बन गई, क्योंकि यदि राख के कण विमानों से टकराते तो हवा में हादसे की आशंका थी। ज्वालामुखी की राख (ऐश) 45,000 फीट ऊपर तक जा रही थी, जबकि विमान इससे नीचे उड़ते हैं। भारत के सामने पहली बार ऐसे हालात बने थे, इसलिए सरकार ने रियल टाइम वोल्कैनिक ऐश रिस्पॉन्स प्रोटोकॉल सक्रिय किया।
इसमें विमानन मंत्रालय की निगरानी में एयर ट्रैफिक कंट्रोल, मौसम विभाग, एयरलाइंस और अंतरराष्ट्रीय एविएशन एजेंसियों ने साथ काम शुरू किया। सबसे पहले एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने नोटम (नोटिस टू एयर मिशन) जारी कर एयरलाइंस को अलर्ट किया। फिर माइक्रो डिसेंट मॉडल लागू किया। इसमें कुछ विमानों को उनकी न्यूनतम उड़ान ऊंचाई से 2 से 4 हजार फीट नीचे उड़ाया गया। दिल्ली और मुंबई स्थित फ्लाइट इंफॉर्मेशन रीजन में हर घंटे ऊंचाई वाली हवा में राख कणों का जोखिम जांचा गया। हर 90 मिनट में विमानों को अपडेट भेजे, तब जाकर हालात काबू में आए। वहीं, राख के बादलों ने अरब सागर, गुजरात के रास्ते राजस्थान में एंट्री की। सतह से इसकी ऊंचाई 8 से 15 किमी तक थी। हालांकि प्रदेश के मौसम, वातावरण और विमान सेवा पर कोई असर नहीं दिखा। दो घटनाओं के बाद बना ऐश प्रोटोकॉल 1राख विमानों के लिए क्यों घातक?
इसमें बेहद महीन कांच, धूल व खनिज कण होते हैं। सिलिका, एल्युमिनियम ऑक्साइड, लौह ऑक्साइड, सल्फर भी होते हैं। इंजन में जब ये कण जाते हैं तो 1 हजार डिग्री तापमान में पिघलकर टर्बाइन ब्लेड पर जम जाते हैं। दुनिया ने कब ऐसे हालात आए?
पहली बार, ब्रिटिश एयरवेज की उड़ान बीए-9 थी, जिसमें सभी चार इंजन ऐश-इंजेस्टन के कारण बंद हो गए। दूसरा- केएलएम-867, जिसमें इंजन क्षतिग्रस्त हुए थे। इसी के बाद दुनिया ने वोल्कैनिक ऐश को ‘इनविजिबल हैजर्ड’ माना। सख्त प्रोटोकॉल बनाया। भारत में कहां-कहां विमानों को खतरा था?
इथियोपिया भारत से पश्चिम दिशा में 4300 किमी दूर है। जब ज्वालामुखी फटा तो राख इथियोपिया से पूर्व में बही। गुजरात, राजस्थान, एनसीआर-दिल्ली, पंजाब, हरियाणा के ऊपर उड़ रहे विमानों को अलर्ट दिया गया। माइक्रो डिसेंट मॉडल क्या है?
इसमें विमान को ऐश-लेयर से दूर ले जाने के लिए ऊंचाई में बदलाव करते हैं। इसका आधार एक वैज्ञानिक जोखिम मैप है।
इथियोपिया के ज्वालामुखी की राख जब पूर्व दिशा में बढ़ने लगी तो भारत में गंभीर स्थिति बन गई, क्योंकि यदि राख के कण विमानों से टकराते तो हवा में हादसे की आशंका थी। ज्वालामुखी की राख (ऐश) 45,000 फीट ऊपर तक जा रही थी, जबकि विमान इससे नीचे उड़ते हैं। भारत के सामने पहली बार ऐसे हालात बने थे, इसलिए सरकार ने रियल टाइम वोल्कैनिक ऐश रिस्पॉन्स प्रोटोकॉल सक्रिय किया।
इसमें विमानन मंत्रालय की निगरानी में एयर ट्रैफिक कंट्रोल, मौसम विभाग, एयरलाइंस और अंतरराष्ट्रीय एविएशन एजेंसियों ने साथ काम शुरू किया। सबसे पहले एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने नोटम (नोटिस टू एयर मिशन) जारी कर एयरलाइंस को अलर्ट किया। फिर माइक्रो डिसेंट मॉडल लागू किया। इसमें कुछ विमानों को उनकी न्यूनतम उड़ान ऊंचाई से 2 से 4 हजार फीट नीचे उड़ाया गया। दिल्ली और मुंबई स्थित फ्लाइट इंफॉर्मेशन रीजन में हर घंटे ऊंचाई वाली हवा में राख कणों का जोखिम जांचा गया। हर 90 मिनट में विमानों को अपडेट भेजे, तब जाकर हालात काबू में आए। वहीं, राख के बादलों ने अरब सागर, गुजरात के रास्ते राजस्थान में एंट्री की। सतह से इसकी ऊंचाई 8 से 15 किमी तक थी। हालांकि प्रदेश के मौसम, वातावरण और विमान सेवा पर कोई असर नहीं दिखा। दो घटनाओं के बाद बना ऐश प्रोटोकॉल 1राख विमानों के लिए क्यों घातक?
इसमें बेहद महीन कांच, धूल व खनिज कण होते हैं। सिलिका, एल्युमिनियम ऑक्साइड, लौह ऑक्साइड, सल्फर भी होते हैं। इंजन में जब ये कण जाते हैं तो 1 हजार डिग्री तापमान में पिघलकर टर्बाइन ब्लेड पर जम जाते हैं। दुनिया ने कब ऐसे हालात आए?
पहली बार, ब्रिटिश एयरवेज की उड़ान बीए-9 थी, जिसमें सभी चार इंजन ऐश-इंजेस्टन के कारण बंद हो गए। दूसरा- केएलएम-867, जिसमें इंजन क्षतिग्रस्त हुए थे। इसी के बाद दुनिया ने वोल्कैनिक ऐश को ‘इनविजिबल हैजर्ड’ माना। सख्त प्रोटोकॉल बनाया। भारत में कहां-कहां विमानों को खतरा था?
इथियोपिया भारत से पश्चिम दिशा में 4300 किमी दूर है। जब ज्वालामुखी फटा तो राख इथियोपिया से पूर्व में बही। गुजरात, राजस्थान, एनसीआर-दिल्ली, पंजाब, हरियाणा के ऊपर उड़ रहे विमानों को अलर्ट दिया गया। माइक्रो डिसेंट मॉडल क्या है?
इसमें विमान को ऐश-लेयर से दूर ले जाने के लिए ऊंचाई में बदलाव करते हैं। इसका आधार एक वैज्ञानिक जोखिम मैप है।