Dharmendra Life Journey | 'माचो मैन' से 'ग्रीक गॉड' तक, धर्मेंद्र की 6 दशक की अनूठी फिल्मी यात्रा का हुआ अंत
एक तरफ वह अपने शक्तिशाली मुक्कों से फिल्मी खलनायकों को धूल चटाते नजर आते थे, गंभीर किरदारों से दर्शकों को भावुक कर देते थे, हल्की सी मुस्कान से लोगों का दिल जीत लेते थे, तो दूसरी तरफ हास्य भूमिकाओं से दर्शकों को हंसा-हंसाकर लोटपोट कर देते थे। धर्मेंद्र एक ऐसे अनोखे अभिनेता थे जिन्होंने करीब 65 साल के अपने फिल्मी करियर में बिना रुके लगातार कई तरह की भूमिकाएं अदा कीं। मर्दानगी, भावुकता और करिश्मा... और इन सब गुणों के साथ सबसे खूबसूरत अदाकारों में गिने जाने वाले धर्मेंद्र ने गंभीर फिल्म “सत्यकाम” से लेकर रोमांटिक फिल्म “बहारें फिर भी आएंगी” तक, और फिर एक्शन से सजी “शोले” से लेकर गुदगुदाती “चुपके चुपके” तक सभी तरह की फिल्मों में काम किया। उनके साथ करियर शुरू करने वाले या समकालिक कई कलाकार अभिनय की दुनिया छोड़कर जाते रहे, लेकिन धर्मेंद्र हाल तक फिल्मों में दिखाई देते रहे। धर्मेंद्र का सोमवार को मुंबई में निधन हो गया। आगामी 8 दिसंबर को वह 90 साल के हो जाते। साल 2023 में, जब वह 88 साल के थे, तो करण जौहर की “रॉकी और रानी की प्रेम कहानी” में वह शबाना आज़मी के साथ रोमांस करते नजर आए। इस फिल्म में उनका चुंबन दृश्य खबरों में बना रहा। इस दौर में उनकी चाल धीमी हो गई थी, शरीर से उम्र झलक रही थी, लेकिन आंखों की चमक और प्यारी सी मुस्कान जस की तस थी। वह एक ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने हिंदी फिल्म जगत को दशकों तक ‘श्वेत-श्याम’ से रंगीन तक और अब डिजिटल युग तक बदलते देखा तथा हर दौर में अपनी प्रासंगिकता कायम रखी। धर्मेंद्र ने राजेश खन्ना की सुपर सितारा छवि और अमिताभ बच्चन की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद मजबूती से अपने पैर व्यावसायिक सिनेमा में जमाए रखे। तीन सौ से अधिक फिल्मों में काम कर चुके धर्मेंद्र को अक्सर ग्रीक गॉड कहा जाता था। उनकी यह पहचान एक संवेदनशील कलाकार के रूप में उनकी छवि को ‘माचो मैन’ के किरदारों से छिपा देती थी। अभिनेता ने 2018 में ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में कहा था, ‘‘जब भी मैं स्क्रीन पर गया, मैंने हमेशा अपनी छवि तोड़ी है। मुझे नहीं पता कि ग्रीक गॉड होने का क्या मतलब है, लेकिन लोग मुझे यह कहते थे।” सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले धर्मेंद्र अक्सर लोनावला में अपने खेत की तस्वीरें और अपनी लिखी उर्दू की पंक्तियां भी साझा करते थे। धर्मेंद्र के इंस्टाग्राम पर 25 लाख फॉलोअर और ‘एक्स’ पर 7,69,000 से ज्यादा फॉलोअर थे। पंजाब के लुधियाना जिले के नसरली गांव में 8 दिसंबर, 1935 को किसान परिवार में एक आदर्शवादी स्कूल टीचर के घर जन्मे धर्मेंद्र अक्सर दिलीप कुमार की फिल्में देखते थे। धीरे-धीरे, एक सपना पैदा हुआ कि अपने पसंदीदा अभिनेता की तरह पोस्टरों पर अपना नाम देखें।इसे भी पढ़ें: बॉलीवुड के 'ही-मैन' धर्मेंद्र पंचतत्व में विलीन, पीछे छोड़ी देओल परिवार की अनमोल सिनेमाई विरासत फिल्मों से उनका रिश्ता 1958 में शुरू हुआ जब ‘फिल्मफेयर’ मैगज़ीन ने देश भर में ‘टैलेंट हंट’ की घोषणा की। युवा धरम ने अपनी किस्मत आज़माने का फ़ैसला किया, स्पर्धा जीती और मुंबई के लिए अपना बोरिया बिस्तर बांध लिया। उन्हें जिस फिल्म का वादा किया गया था, वह कभी नहीं बनी और संघर्ष का दौर शुरू हुआ। धर्मेंद्र ने मुंबई में गुज़ारा करने के लिए एक ड्रिलिंग फ़र्म में 200 रुपये महीने पर काम किया।पहला ब्रेक 1960 में अर्जुन हिंगोरानी की फ़िल्म “दिल भी तेरा, हम भी तेरे” से मिला। उन्होंने बाद में साथ में “कब? क्यों? और कहां? और कहानी किस्मत की जैसी फिल्में भी कीं। फिल्मों में उनका पदार्पण सफल नहीं रहा, लेकिन उन्हें पहचान मिलनी शुरू हो गई। बिमल रॉय ने उन्हें नूतन और अशोक कुमार के साथ अपनी फिल्म “बंदिनी” में लिया। आई मिलन की बेला और हकीकत तथा काजल जैसी कई फिल्मों के बाद, मीना कुमारी के साथ 1966 की फिल्म फूल और पत्थर से उन्हें एक सितारा पहचान मिली। उसी साल उन्हें ऋषिकेश मुखर्जी की पहली फिल्म “अनुपमा” में देखा गया। मुखर्जी को धर्मेंद्र में अपनी फिल्म की अभिनेत्री शर्मिला टैगोर के लिए एक नरम, मददगार नायक दिखाई दिया। मुखर्जी ने धर्मेंद्र की पर्दे पर बन गई पहचान से अलग “मझली दीदी”, “सत्यकाम”, “गुड्डी”, “चैताली” और बेशक, “चुपके चुपके” जैसी फिल्मों में कास्ट किया। ‘‘चुपके चुपके’’ के बॉटनी प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी का उनका किरदार लंबे समय तक याद रखा जाएगा।इसे भी पढ़ें: हिंदी सिनेमा के चहेते अभिनेता धर्मेंद्र का निधन, PM मोदी ने दी श्रद्धांजलि, कहा- भारतीय सिनेमा में एक युग का अंत इस फिल्म में उन्होंने 70 और 80 के दशक में बड़ा नाम बन चुके अमिताभ बच्चन के साथ काम किया। शोले में भी जय और वीरू के उनके किरदारों ने उनके तालमेल को बखूबी दर्शाया। बाद के दशकों में, धर्मेंद्र चरित्र भूमिकाएं निभाने लगे। 2007 में, जब वह 72 साल के थे, उन्होंने श्रीराम राघवन की जॉनी गद्दार में एक गिरोह के सदस्य का किरदार निभाया, वहीं लाइफ इन ए मेट्रो में एक ऐसे बुजुर्ग आदमी की भूमिका अदा की, जो अपने बचपन के प्यार के पास फिर से लौटता है। धर्मेंद्र की शादी प्रकाश कौर से हुई थी, जिससे उनके चार बच्चे हैं। इनमें दो बेटे अभिनेता बॉबी और सनी देओल तथा दो बेटियां विजेता और अजीता हैं। साल 1980 में, उन्होंने मशहूर अभिनेत्री ‘ड्रीम गर्ल’ हेमा मालिनी से शादी कर ली। दोनों ने साथ में कई फिल्मों में काम किया था। इनमें ‘‘सीता और गीता’’, ‘‘द बर्निंग ट्रेन’’, ‘‘ड्रीम गर्ल’’ और ‘‘शोले’’ हैं। धर्मेंद्र ने इस तरह की अटकलों को खारिज कर दिया कि उन्होंने इस्लाम धर्म अपनाकर हेमा मालिनी से शादी की थी। धर्मेंद्र और हेमा की दो बेटियां- ईशा और अहाना देओल हैं। हेमा से शादी के बाद धर्मेंद्र ने 1981 में प्रोडक्शन हाउस ‘विजेता फिल्म्स’ की स्थापना की। 1983 में ‘‘बेताब’’ फिल्म से बेटे सनी देओल को फिल्मी दुनिया में लाने के लिए इसे बनाया गया था। इसी बैनर तले 1995 में उनके छोटे बेटे बॉबी
एक तरफ वह अपने शक्तिशाली मुक्कों से फिल्मी खलनायकों को धूल चटाते नजर आते थे, गंभीर किरदारों से दर्शकों को भावुक कर देते थे, हल्की सी मुस्कान से लोगों का दिल जीत लेते थे, तो दूसरी तरफ हास्य भूमिकाओं से दर्शकों को हंसा-हंसाकर लोटपोट कर देते थे। धर्मेंद्र एक ऐसे अनोखे अभिनेता थे जिन्होंने करीब 65 साल के अपने फिल्मी करियर में बिना रुके लगातार कई तरह की भूमिकाएं अदा कीं। मर्दानगी, भावुकता और करिश्मा... और इन सब गुणों के साथ सबसे खूबसूरत अदाकारों में गिने जाने वाले धर्मेंद्र ने गंभीर फिल्म “सत्यकाम” से लेकर रोमांटिक फिल्म “बहारें फिर भी आएंगी” तक, और फिर एक्शन से सजी “शोले” से लेकर गुदगुदाती “चुपके चुपके” तक सभी तरह की फिल्मों में काम किया।
उनके साथ करियर शुरू करने वाले या समकालिक कई कलाकार अभिनय की दुनिया छोड़कर जाते रहे, लेकिन धर्मेंद्र हाल तक फिल्मों में दिखाई देते रहे। धर्मेंद्र का सोमवार को मुंबई में निधन हो गया। आगामी 8 दिसंबर को वह 90 साल के हो जाते। साल 2023 में, जब वह 88 साल के थे, तो करण जौहर की “रॉकी और रानी की प्रेम कहानी” में वह शबाना आज़मी के साथ रोमांस करते नजर आए। इस फिल्म में उनका चुंबन दृश्य खबरों में बना रहा। इस दौर में उनकी चाल धीमी हो गई थी, शरीर से उम्र झलक रही थी, लेकिन आंखों की चमक और प्यारी सी मुस्कान जस की तस थी। वह एक ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने हिंदी फिल्म जगत को दशकों तक ‘श्वेत-श्याम’ से रंगीन तक और अब डिजिटल युग तक बदलते देखा तथा हर दौर में अपनी प्रासंगिकता कायम रखी।
धर्मेंद्र ने राजेश खन्ना की सुपर सितारा छवि और अमिताभ बच्चन की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद मजबूती से अपने पैर व्यावसायिक सिनेमा में जमाए रखे। तीन सौ से अधिक फिल्मों में काम कर चुके धर्मेंद्र को अक्सर ग्रीक गॉड कहा जाता था। उनकी यह पहचान एक संवेदनशील कलाकार के रूप में उनकी छवि को ‘माचो मैन’ के किरदारों से छिपा देती थी। अभिनेता ने 2018 में ‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में कहा था, ‘‘जब भी मैं स्क्रीन पर गया, मैंने हमेशा अपनी छवि तोड़ी है। मुझे नहीं पता कि ग्रीक गॉड होने का क्या मतलब है, लेकिन लोग मुझे यह कहते थे।”
सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले धर्मेंद्र अक्सर लोनावला में अपने खेत की तस्वीरें और अपनी लिखी उर्दू की पंक्तियां भी साझा करते थे। धर्मेंद्र के इंस्टाग्राम पर 25 लाख फॉलोअर और ‘एक्स’ पर 7,69,000 से ज्यादा फॉलोअर थे। पंजाब के लुधियाना जिले के नसरली गांव में 8 दिसंबर, 1935 को किसान परिवार में एक आदर्शवादी स्कूल टीचर के घर जन्मे धर्मेंद्र अक्सर दिलीप कुमार की फिल्में देखते थे। धीरे-धीरे, एक सपना पैदा हुआ कि अपने पसंदीदा अभिनेता की तरह पोस्टरों पर अपना नाम देखें।
इसे भी पढ़ें: बॉलीवुड के 'ही-मैन' धर्मेंद्र पंचतत्व में विलीन, पीछे छोड़ी देओल परिवार की अनमोल सिनेमाई विरासत
फिल्मों से उनका रिश्ता 1958 में शुरू हुआ जब ‘फिल्मफेयर’ मैगज़ीन ने देश भर में ‘टैलेंट हंट’ की घोषणा की। युवा धरम ने अपनी किस्मत आज़माने का फ़ैसला किया, स्पर्धा जीती और मुंबई के लिए अपना बोरिया बिस्तर बांध लिया। उन्हें जिस फिल्म का वादा किया गया था, वह कभी नहीं बनी और संघर्ष का दौर शुरू हुआ। धर्मेंद्र ने मुंबई में गुज़ारा करने के लिए एक ड्रिलिंग फ़र्म में 200 रुपये महीने पर काम किया।
पहला ब्रेक 1960 में अर्जुन हिंगोरानी की फ़िल्म “दिल भी तेरा, हम भी तेरे” से मिला। उन्होंने बाद में साथ में “कब? क्यों? और कहां? और कहानी किस्मत की जैसी फिल्में भी कीं। फिल्मों में उनका पदार्पण सफल नहीं रहा, लेकिन उन्हें पहचान मिलनी शुरू हो गई। बिमल रॉय ने उन्हें नूतन और अशोक कुमार के साथ अपनी फिल्म “बंदिनी” में लिया। आई मिलन की बेला और हकीकत तथा काजल जैसी कई फिल्मों के बाद, मीना कुमारी के साथ 1966 की फिल्म फूल और पत्थर से उन्हें एक सितारा पहचान मिली। उसी साल उन्हें ऋषिकेश मुखर्जी की पहली फिल्म “अनुपमा” में देखा गया।
मुखर्जी को धर्मेंद्र में अपनी फिल्म की अभिनेत्री शर्मिला टैगोर के लिए एक नरम, मददगार नायक दिखाई दिया। मुखर्जी ने धर्मेंद्र की पर्दे पर बन गई पहचान से अलग “मझली दीदी”, “सत्यकाम”, “गुड्डी”, “चैताली” और बेशक, “चुपके चुपके” जैसी फिल्मों में कास्ट किया। ‘‘चुपके चुपके’’ के बॉटनी प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी का उनका किरदार लंबे समय तक याद रखा जाएगा।
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इस फिल्म में उन्होंने 70 और 80 के दशक में बड़ा नाम बन चुके अमिताभ बच्चन के साथ काम किया। शोले में भी जय और वीरू के उनके किरदारों ने उनके तालमेल को बखूबी दर्शाया। बाद के दशकों में, धर्मेंद्र चरित्र भूमिकाएं निभाने लगे। 2007 में, जब वह 72 साल के थे, उन्होंने श्रीराम राघवन की जॉनी गद्दार में एक गिरोह के सदस्य का किरदार निभाया, वहीं लाइफ इन ए मेट्रो में एक ऐसे बुजुर्ग आदमी की भूमिका अदा की, जो अपने बचपन के प्यार के पास फिर से लौटता है।
धर्मेंद्र की शादी प्रकाश कौर से हुई थी, जिससे उनके चार बच्चे हैं। इनमें दो बेटे अभिनेता बॉबी और सनी देओल तथा दो बेटियां विजेता और अजीता हैं। साल 1980 में, उन्होंने मशहूर अभिनेत्री ‘ड्रीम गर्ल’ हेमा मालिनी से शादी कर ली। दोनों ने साथ में कई फिल्मों में काम किया था। इनमें ‘‘सीता और गीता’’, ‘‘द बर्निंग ट्रेन’’, ‘‘ड्रीम गर्ल’’ और ‘‘शोले’’ हैं। धर्मेंद्र ने इस तरह की अटकलों को खारिज कर दिया कि उन्होंने इस्लाम धर्म अपनाकर हेमा मालिनी से शादी की थी।
धर्मेंद्र और हेमा की दो बेटियां- ईशा और अहाना देओल हैं। हेमा से शादी के बाद धर्मेंद्र ने 1981 में प्रोडक्शन हाउस ‘विजेता फिल्म्स’ की स्थापना की। 1983 में ‘‘बेताब’’ फिल्म से बेटे सनी देओल को फिल्मी दुनिया में लाने के लिए इसे बनाया गया था। इसी बैनर तले 1995 में उनके छोटे बेटे बॉबी देओल की पहली फिल्म ‘बरसात’ आई। इसके बाद 2005 में भतीजे अभय देओल को ‘‘सोचा न था’’ से और 2019 में पोते करण देओल को ‘‘पल पल दिन के पास’’ से फिल्मी दुनिया में आने का मौका मिला।
धर्मेंद्र ने अपने दोनों बेटों के साथ पहली बार 2007 में आई फिल्म ‘‘अपने’’ में काम किया था। इसके बाद तीनों ‘‘यमला पगला दीवाना’’ में भी एक साथ दिखे। कहा जाता है कि धर्मेंद्र कभी ईशा को फिल्मों में लाने के पक्ष में नहीं थे और उन्होंने कभी अपनी बेटी की फिल्म ‘‘धूम’’ नहीं देखी। उन्होंने 1990 में सनी देओल को लेकर ‘‘घायल’’ फिल्म बनाई थी, जिसके लिए उन्हें (सनी को) राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी नवाजा गया। पद्म भूषण से सम्मानित अभिनेता ने राजनीति में भी किस्मत आजमाई और 2004 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर बीकानेर से लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए। उनकी आखिरी फिल्म ‘इक्कीस’ अगले महीने रिलीज होगी। फिल्म निर्माताओं ने आज ही फिल्म का पोस्टर जारी किया है, जिसमें धर्मेंद्र दिखाई दे रहे हैं। धर्मेंद्र दुनिया से तो रुखसत हो गए, लेकिन अपने अनगिनत प्रशंसकों के दिल और उनकी यादों में वह हमेशा जिंदा रहेंगे।
NEWS-PTI



